चम्बल में जाति विशेष के खिलाफ मुहिम, जातीय तनाव चरम पर
जगजीवन परिहार मुठभेड़ पर भी लगे सवालिया निशान
मुरैना 23 मार्च 2007 । चम्बल घाटी इन दिनो जबरदस्त जातीय तनाव में है ,जहॉं एक ओर यह तनाव जनता विरूद्ध सरकार है वहीं दूसरी ओर विभिन्न जाति विशेष के लोगों के बीच भी साम्प्रदायिकता और बढ़ती वैमनस्यता व विद्धेष भी खुल कर सड़कों पर आने की तैयारी में लगभग चरम तक आ पहुँचा है । यदि समय रहते मामले को काबू में लाने के उपाय नहीं हुये तो बिना शक एक भारी अप्रिय व लोक हानिकारक स्थिति बनते देर नहीं लगेगी । अफसोसजनक यह है कि या तो सरकार सोयी पड़ी है और चम्बल में भड़कते आक्रोश से नावाकिफ है या फिर उसकी खुफिया एजेन्सियॉं लगभग नाकारा हो चुकीं है जो आने वाली आफतों के आगाज से अचेत हैं । हालांकि चम्बल में जातीय संघर्ष के कण तो काफी समय से गाहे बगाहे लगभग हमेशा ही छितराये रहते हैं लेकिन हाल ही में में कुछ प्रशासनिक और सरकारी बेवकूफियों के कारण ये सभी साम्प्रदायिक कण लगभग एकजुट हो गये हैं । जहॉं सरकार द्वारा की जा रही अन्धाधुन्ध बिजली कटौती से पहले से ही लोग भारी गुस्साये हुये थे और किसानों पर पड़ी बिजली कटौती की मार के बाद उन्हें खाद न मिलने, उनकी लाठीयों से पिटाई करने, फिर आलों और वारिश से हुये भारी नुकसान से लगभग पूरी तरह हताश हो चुके किसानों से खुद सामने खड़े होकर मुख्यमंत्री शिब्बूराजा कह गये कि वे किसानों को हरजाने की पाई पाई देंगें मगर असलियत ये है कि आज दिनांक तक गरीब किसानों के हरजाने की बात तो छोडि़ये वह तो उन्हें तब मिलेगा जब उनके नुसान का आकलन किया जायेगा, अभी तो सच ये है कि उनके नुकसान का आकलन ही नहीं किया जा सका और जहॉं जिन किसानों का आकलन किया भी गया है तो उन किसानों को शिकायत है कि उनके नुकसान का आकलन सही नहीं हुआ, सारा आकलन मनमाना व स्वैव्छाचारिता से भरपूर है । कई जगह तो आकलन अंदाजे के नाम पर किसानों से जबरन रिश्वत वसूली जा रही है वहीं कई किसानों का कहना है कि रिश्वत देने के बाद भी वे सही आकलित नहीं किये गये । वहीं दूसरी ओर छात्रों में भी सरकार के खिलाफ जमकर आक्रोश है, ऐसा पहली बार हो रहा है लब परीक्षाओं के दरम्यां बिजली की अन्धाधुन्ध कटौती की जा रही हो ।
जारी अगले अंक में…………
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