पुलिस और अदालत पर 305 का छाया भूत
अप्रेल फूल समाचार सेवा । सी आर पी सी की एक धारा 305 को बचकानी और खिलौना मान कर रददी की टोकरी में पटक कर पुलिस ओर अदालत ने न केवल सैकड़ों हजारों मुकदमे कायम कर डाले बल्कि कईयों को जेल की हवायें खिला डालीं । मजे की बात ये है कि अदालतों ने भी इस धारा को हवा में उड़ाते हुये ऐसे मुकदमों के फैसले भी कर डाले । दरअसल यह धारा जजों और पुलिस की नजरों से सदा ही ओझल होती रही है । मुरैना के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का मानना है कि जब किसी संस्था के खिलाफ मामला दर्ज करते हैं तो हमें धारा 305 दण्ड प्रक्रिया संहिता में नजर नहीं आती, शायद यह उस वक्त अदृश्य हो जाती है , फिर हम संस्थाओं के मामले में भी उसी तरीके से जनरल कार्यवाही कर डालते हैं जैसी चोर उचक्कों और जेब कतरों के साथ करते हैं, हमने कई समाज सेवीयों और संस्थाओं को धड़ल्ले से खुल्ले आम कानून तोड़ कर जेल की हवा खिलाई है , आगे भी खिलायेंगें , खिला भी रहे हैं । हमने छात्रवृत्ति की 42 प्रकरणों में इस धारा की जम कर ऐसी तैसी की कोई बाल बांका नहीं कर पाया, इन मामलों में भी कईयों को जेल दिखाई, इसके पहले भी हम स्वयंसेवी संस्थाओं के खिलाफ 70 थोक बन्द मामले दर्ज कर इस धारा की थोक बन्द धज्जियां उड़ा चुके हैं, फिर हम इन सबके बाद लगभग 25-27 और केस दर्ज कर कानून की जम कर ऐसी तैसी कर खिल्ली उड़ा चुके हैं , हमारी तारीफ करिये हुजूर हम पर आज तक न तो ऊंगली उठी न कुछ भी हमारा कभी बिगड़ा । मुरैना के एक न्याधीश महोदय का भी मानना है कि हॉं हम जानते हैं कि ऐसी कोई धारा कभी सरकार ने बनायी तो थी, लेकिन हमने कभी इसके इस्तेमाल को तवज्जुह नहीं दी, हम तो पुलिस द्वारा मुल्जिम अदालत में लाते ही बिना किसी कानूनी आपत्ति को देखे सीधे ही जेल दिखा देते हैं, हॉं हमने कईयों को पहले भी ऑंख बन्द कर जेल भेजा और अब भी भेज रहे हैं । कई मुकदमों में हम इस धारा की ऐसी तेसी कर अपने फैसले सुना चुके हैं, इस समय भी कई मुकदमें इस धारा का पालन किये बगैर हम आज भी धड़ाधड़ सुन रहे हैं । और सुनते रहेंगें । धारा और कानून कभी हमसे बड़े नहीं हैं, हम अदालत हैं, जो कर देंगें वही सही हैं , हम नहीं जानते कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 12 क्या है, हमें यह भी नहीं मालुम कि संस्थाओं को राज्य का दर्जा भारत का संविधान देता है । हम यह भी नहीं जानते या यूं कहो कि मानते कि म.प्र. सरकार ने शरत चन्द्र बेहार की अध्यक्षता में संस्थाओं और समाजसेवियों के विरूद्ध अपराध कायमी मामले में क्या निर्णय लिया था और इस सम्बन्ध में शासन ने क्या आदेश जारी किये थे । हम तो संस्थाओं के पदाधिकारीयों को जम कर चोर उचक्कों की तरह अदालत में सबके सामने बेइज्जत करते आये हैं, कर रहे हैं और करते भी रहेंगे । अब तमाशा इस बात को लेकर खड़ा हो गया है कि चम्बल के कई सामाजिक संगठनों ने एक साथ मिल कर इस मामले को अति उच्च स्तर तक उठाने और पुलिस अधिकारीयों तथा न्यायाधीशों के खिलाफ आवाज उठाने और संघर्ष का ऐलान कर दिया है । इसके तहत सूचना का अधिकार के उपयोग से लेकर जनहित याचिका तक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने की तैयारी कर ली है । वहीं भारत के और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं तक अपनी बात पहुँचा कर उन्हें इस कानून पालन अधिकार महा अभियान में शामिल करने की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी है । ज्ञातव्य है कि कई पुलिस अधिकारीयों और न्यायाधीशों की गर्दन पर धारा 305 तलवार बन कर लटक गयी है । और रिश्वत लेकर या राजनीतिक दवाब में किसी को कभी भी जेल दिखा देने वाले अब खुद भी जेल भेजे जा सकते हैं । ( उक्त समाचार/आलेख केवल अप्रेल फूल समाचार है , यह सत्य नहीं है)
//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});