बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, मय भी मयस्सर नहीं कि दिल से मेरे गम निकले ।मुरैना डायरी नरेन्द्र सिंह तोमर ’’आनन्द’’
हार के पीछे की हार मुरैना जिला पंचायत में पिछले एक महीने से तगड़ी सरगर्मी छायी थी ,गोया मसला था जिला पंचायत के अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का । महीने भर चली नूरा कुश्ती का अंजाम अंतत: यह हुआ कि केवल एक साल पदासीन रहने के बाद हमीर पटेल को कुर्सी बेइज्जती के साथ खोना पड़ी । जिस कदर बेआबरू होकर जिला पंचायत की गलियों यानि कूचों से लतिया और धकिया कर उन्हें बाहर किया गया है , क्या गलत है यदि शायर कहता है कि बड़े बेआबरू तेरे कूचे से हम निकले । हमीर पटेल की हार के माने क्या है यह तो सब चम्बलवासी भली भांति जानते हैं । जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनाव जीत कर जब पटेल ने अपने आपको जन्मजात कांग्रेसी बताया और विशुद्ध कांग्रेसी बहुमत वाली जिला पंचायत में अपने लिये समर्थन कबाड़ कर खुद को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवा लिया । अध्यक्ष बनने के बाद केवल एक महीने के भीतर ही उन्होंनें खुद को पैदायशी भाजपाई बताना शुरू कर दिया । और म.प्र. सरकार के एक सजातीय मंत्री की चरण वन्दना और अंध श्रद्धा का ऐसा मायाजाल बिछाया कि , मंत्री को भी धृतराष्ट्र के मानिन्द पटेल और उनके साथियों की दुर्योधनी करतूतें नजर आना बन्द हो गयीं । सारे मुरैना जिला में गुण्डागिरी और अत्याचार का ऐसा कहर बरपाया गया कि चारों ओर त्राहि त्राहि मच गई । हालात इतने बिगड़े कि क्या पुलिस और क्या प्रशासन पटेल साहब के गुण्डों के समक्ष आंख बन्द कर नतमस्तक । उपर से तुर्रा ये कि पटेल साहब की हर ख्वाहिश पर मंत्री का सिक्का । फिर जो कहर की आंधी जिले में चली कि सारा मुरैना जिला थर्रा उठा । महीने भर से चल रही नौटंकी का अंतिम दृश्य तो शुरू में ही सबको ज्ञात था लेकिन मंत्री ने अपनी पूरी ताकत और रूतबे का बेजा इस्तेमाल कर अंतिम दम तक पटेल को बचाने के लिये जिस कदर शर्मनाक कोशिशें कीं , वास्तव में राजनीति की इससे अधिक घृणित व काली सूरत दूसरी न होगी । मंत्री के प्रयास और पटेल के हटने के बाद भी मंत्री का खम्भा नोचू बयान ने तो भाजपा की बची खुची चटनी का लपटा बना दिया । सज रही डोली मेरी मॉं सुनहरे गोटे में दिल्ली से लेकर भोपाल तक फार्मूला फेल सरकारें आतीं जाती रहीं हैं , चल भी रहीं हैं । सूचना का अधिकार पर कल केबिनेट सचिव चतुर्वेदी जी ग्वालियर में बयान दे गये कि सूचना का अधिकार की समीक्षा करेंगें , इसके दुरूपयोग के मामले सामने आ रहे हैं । सो भईया चतुर्वेदी सच्ची बात कहने में भी अगर फांसी लगती है तो लग जाये , मगर आपकी बात का जवाब देना जरूरी है जिससे आपका मुगालता दूर हो जाये । सच्चाई ये है चतुर्वेदी जी कि भारत की जनता को अभी उपयोग का अधिकार ही नहीं मिल पाया है तो दुरूपयोग क्या खाक करेगी । आज की तारीख तक सचाई और असल स्थिति यह है कि सूचना का अधिकार में दिये जाने वाले 98 प्रतिशत आवेदन बिना सूचना दिये और बिना किसी अन्य कार्यवाही के अधिनियम के ठेंगा दिखा रहे हैं । आवेदन लेकर महीनों गुजर गयें कोई सूचना नहीं देता । और तो और आपके तथाकथित सूचना आयोगों की हालत तो सरकारी कार्यालयों से भी ज्यादा बदतर है , आपके सूचना आयोग अधिनियम की धारा 18 के बारे में आज की तारीख तक नहीं जानते । हम मध्यप्रदेश की बात कर रहे हैं हुजूर, हम नहीं कहते जनता का कहना है कि प्रदेश का सबसे बड़ा भ्रष्ट सरकारी अफसर सूचना आयोग का अध्यक्ष है जो कानून को जेब में डालकर रखता है । अभी पिछले महीने ही धारा 18 के सारे आवेदन आयोग ने सारे मध्यप्रदेश में बैरंग लौटा दिये और एक चिठठी संग में चिपका दी कि धारा 19 में पहले अपील करो । अरे भईया जिस कार्यालय में सूचना अधिकारी ही नियुक्त न हो अपील अधिकारी का कोई अता पता न हो , इण्टरनेट पर कोई जानकारी उपलब्ध न हो , आवेदन लेकर दो तीन महीने तक कोई उत्तर न दे , तो फिर प्यारे चतुर्वेदी तुम्हीं बताओं कि अपील किसको करें और कैसे करें , भईया अपील के लिये नीचे का कोई आदेश तुम्हारे पास होगा तभी तो अपील करोगे जब कोई आदेश या सूचना नहीं होगी तो क्या खाक अपील करोगे । आवेदकों ने मध्यप्रदेश के सूचना आयोग को धारा 18 में ऐसे आवेदन भेजे और साफ शब्दों में लिखा भी कि कोई उत्तर या सूचना नहीं मिली है तथा इनके सूचना अधिकारी या अपील अधिकारी का कोई अता पता नहीं है । फिर भी आवेदकों के आवेदन बिना पढ़े तथाकथित सूचना आयोग द्वारा छपी छपाई रखी चिठठी के साथ लौटा दिये जायें और धारा 18 को आयोग द्वारा सुनने से ही मना कर दिया जाये तो अब जनता क्या करे । विश्वास नहीं हो तो मेरे पास आ जाना दो तीन चिठठी मेरे पास पक्के सबूतों के साथ रखीं हैं । सो भईया ये है तुम्हारा सूचना का अधिकार और ऐसी हो रही है इसकी फजीहत और ऐसा हो रहा है इसका जनता द्वारा दुरूपयोग । सो भईया क्या खाक समीक्षा इसकी करोगे और क्या संशोधन इसमें लाओगे , जनता के लिये यह पहले ही बेमतलब का हो चुका है , अब इसे भ्रष्टों के रक्षा कवच में बदलो इससे पहले हम निवेदन करते है कि इसे लत्ता का सांप समझ कर समाप्त कर दो तो ज्यादा अच्छा है कम से कम लोगों का भ्रम तो दूर होगा ।
मय भी मयस्सर नही गम भुलाने के लिये नकली शराब का गढ़ बन चुका मुरैना जिला की हालत इस कदर खस्ता है कि शराब पीने वालों का गम न अखबार वाले छापते हैं न प्रशासन उनकी सुनता है , उनकी शिकायत शराबी की शिकायत कह कर हवा में उछाल दी जाती है । लोग पीते हैं , अपनी बेगम के गम में गमगीन हो गमफ्री होने के लिये मगर शहर और सारे जिले में बिक रही शराब की हालत ये है कि पीने के बाद या तो चढ़ती ही नहीं या फिर उसमें इतना कुछ उलट सुलट मसाला और ड्रग्स मिले रहते हैं कि एक पैग के बाद ही मौत नजर आने लगती है । ऐसा नहीं कि दो नंबर की शराब के कारण ऐसी हालत हो , असल में सरकारी ठेकों पर मिलने वाली असल शराब की यह हालत है । विशुद्ध ओ.पी. से और जहरीले ड्रग्स से मिश्रित कर एक बोतल की पांच बोतल बनाने का जो खेल मुरैना जिला में चल रहा है उससे जहर पी रहे शराबीयों का गम ही नहीं जिन्दगी भी खतरे में हैं । अव्वल तो मुरैना जिला में शराब के दाम ही इतने ज्यादा हैं कि आप साफ समझ जायेंगें कि शराब के पीछे क्या खेल चल रहा है । बीयर के दाम घटिया बीयर 70 रूपये से लेकर 110 रू तक बेची जा रही है, 8 पी.एम. व्हिस्की की अद्धी 135 रू की बोतल 300 रू की वगैरह वगैरह और वह भी शुद्ध मिलावटी यानि विशुद्ध जहरीली । शराबीयों का दुख ऐसा है कि वे बेचारे किसी से कुछ शिकवा भी नहीं कर सकते , शराबी कहकर उन्हें लताड़ दिया जाता है ।