मन के वश में रहने वाले अर्थात मन के अधीन रहने वाले मनुष्य हैं, पाश अर्थात बंधन के वशीभूत होकर उसके अधीन रहने वाले पशु हैं, देवत्व अर्थात सदा देते रहने की प्रकृति से वशीभूत होकर उसके अधीन रहने वाले देवता हैं, तमोगुण व्याप्त लिप्त सदा दूसरों की चीजों के हरण में प्रवृत रहने वाले राक्षस होते हैं
Suresh Gupta said,
जून 8, 2008 at 8:53 पूर्वाह्न
आपने टिप्पणी मॉडरेशन सक्षम किया हुआ है, शब्द सत्यापन भी लगाया हुआ है. क्या आप नहीं चाहते कि लोग आप के लेखों पर टिपण्णी करें?
मेरी टिपण्णी – पशु अपने स्वभाव के अनुसार आचरण कर रहे हैं. देवताओं के बारे में क्या कहें? दानव अलग से नहीं आते, यह मनुष्य ही है जो अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करके दानव बन गया है.
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