बिन भौजी बिन साली, यारों की होली खाली
मुरैना डायरी
नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनन्द’’
होली की रंगत या तो साली से आती है या भाभी से । होली आते ही जीजा और देवर दोनों ही फूल के कुप्पा हो लेते हैं, मगर उन दुर्भागियों की क्या कहें जिन्हें किस्मत ने साली बख्शी है न भाभी ।
अपने चौबे जी जहॉं होली आते ही मस्तमौले हो जाते हैं वहीं अपने ठाकुर साहब की होली आते ही त्यौरियां तनने लगतीं हैं । वर्षो से चल रहे इस सालाना राज का पता लगाने की हमने अबकी बार जो ठानी तो पता चला कि जहॉं चौबे जी के दोनों हाथों में होली पर लडडू रहते हैं , वहीं अपने ठाकुर साहब दोनों हाथ खाली पाकर भीतर ही भीतर कुढ़ते रहते हैं । असल में चौबे जी को भगवान ने सालीयों की जागीर भी दे दी है और भाभीयों की भी फौज बख्शी है , तो दूसरी ओर अपने ठाकुर साहब को दोनों ही चीजों से महरूम रखा है ।
अब गोया चौबे जी जहॉं , अपनी सालीयों और भाभीयों के साथ भंग की तरंग में रंग बदरंग हो नजाकत और शरारत से उनकी चुनरी झपटटा खेलते हैं तो ठाकुर साहब के सीने पे सॉंप लोटते हैं । मारे गुस्सा के कई बार लगता है कि ठाकुर साहब खुद को ही गोली मार लेंगें ।
चौबे जी के घर मची हुड़दंग लीला ठाकुर साहब को फूटी ऑंख नहीं सुहाती , उनके घर से आती खिखिलाहटें ठाकुर साहब के सीने पर हजारों बल्लमों की चोट बरसातीं हैं तो चौबे जी को कलजुगी कन्हैया का वेष धरे देख , ठाकुर साहब खुद को कंस का अवतार मानने लगते हैं । चौबे जी के घर उड़ते रंगों और गुलाल के बादल ठाकुर साहब को होली के खिलाफ जंग छेड़ने के लिये उकसाते हैं । अब की बार ठाकुर साहब ने ऐलान किया है । गोया शहर में कोई होली नहीं मनायेगा, हमने पूछा क्यों भईया ठाकुर साहब क्यों नहीं मनायें होली , अरे होली है तो मनेगी भी अब उसे कलेण्डर सें काट कर तो फेंक नहीं सकते ।
अब अगर ठाकुर साहब में दम है तो कलैण्डर से हटा दें होली । खैर जो भी है ठाकुर साहब होली न मनाने की घोषणा करके मुसीबत में फंस गये हैं, मन तो उनका भी खूब मचलता है सबको नीला पीला देख कर मगर क्या करें उनकी किस्मत में तो न भौजी है न साली ।
हॉंलांकि ठाकुर साहब को चन्द लोगों ने इज्जत बचाने की खातिर नसीहत दे डाली कि यार अपनी होली न मनाने की मुहिम थोड़ी संशोधित कर लो कि , गीली नहीं सूखी मनायेंगें । मगर ठाकुर साहब की इस इच्छा पर भी सरकार ने तुषारापात कर डाला और सरकार ने घोषणा कर डाली कि अब ड्राई डे होली नहीं मनेगी और इधर उधर से गला तर नहीं करना पड़ेगा सारी होगी सूखी नहीं बल्कि गीली मनेगी, गोया सरकार का कहना है कि अब पानी धरती में सूख गया, वाटर लेवल नीचे धसक गया, दैनिक भास्कर ने सूखी होली मनाने का ऐलान कर डाला तो क्या हुआ, होली तो गीली ही मनेगी चाहे जो जतन कर लो प्यारे यूं नहीं तो यूं सही ।
इसीलिये आज नवभारत लिखता है ‘’फिर न कहना प्यारे कि माइकल पी के दंगा करता है’’
नारायण हरि और पुलिस की होली
आज के अखबारों की खास खबर है कि आज अपहरण हुये डॉक्टर नारायण हरि लौट रहे हैं । चलो अच्छा है लौट आयें नारायण हरि, वरना कांग्रेसी और अपने चौबे जी दोनों ही इस बार होली खेले बगैर रह जाते और सारा कलंक पुलिस के मत्थे मढ़ता । चौबे की सालीयां और भाभीयां अपने सालाना जश्न का आनंद लूटे बगैर नारायण हरि और पुलिस दोनों को कोसतीं । साथ ही जोश में आकर होली न मनाने की घोषणा कर डालने वाला भी उनकी ऑंखों में कांटा बन कर खटकता रहता ।
नेता जी की होली
अपने नेता जी अभी तक स्टिंग के मारे दुबके बैठे हैं, हर होली में कन्हैया के दूसरे अवतार के रूप में अवतरित होने वाले नेता जी अबकी बार हिम्मत नहीं जुटा पा रहे कि कैसे अपनी गोपीयों को घण्टी करके बुलायें, फोन टेपिंग और स्टिंग दोनों के लपेटे में आये नेता जी पर हर साल जहॉं महीने भर पहले सी फागुन आ जाता था वहॉं अब फागुन जा रहा है लेकिन उनके चेहरे पर अभी भी कनागती धुयें उड़ रहे हैं ।
उनकी तमाम नवयौवना गोपीयां भी अपने भवनों मुरझाई पड़ी नेताजी के चेहरे का रंग देख बदरंग हो रहीं हैं । जहॉं नेता जी के रंग हजार हो जाया करते थे अब की बार उनका खुद का रंग भी ढूंढ़े नजर नहीं आता ।
सरकार की होली
कबीना वाले होली नहीं खेलेंगे । इस खबर पर अपना दिमाग ठन्नाया । ससुरी अबकी होली क्या हो ली कि जो देखो चिल्ला रिया है कि मैं नहीं खेलूंगा । उधर कांग्रेसी बोले कि हम नहीं खेलेंगें, पंडित बोले कि हम भी नहीं खेलेंगें अब सरकार बोली कि हम भी नहीं खेलेंगें ।
लगता है यह अभिशप्त होली है जिसे देखो चिल्ला रहा है कि नहीं खेलेगा ।
अपने एक कबीना मित्र से मैंने पूछा क्यों भईये ये क्या नौटंकी हैं क्यों आखिर तुम क्यों नहीं खेलोगे होली । वे बोेले कि अपनी होली तो हो ली । मैं बोला क्या मतलब तो वे बोले कि भईया जिस दिन होली नहीं मनाने का फैसला लिया था हमारी होली तो उसी दिन मन गई थी इसीलिये भईये हम बोले कि हमारी होली तो हो….ली ।